करो अपनी भाषा पर प्यार । जिसके बिना मूक रहते तुम, रुकते सब व्यवहार ।।

जिसमें पुत्र पिता कहता है, पतनी प्राणाधार, और प्रकट करते हो जिसमें तुम निज निखिल विचार । बढ़ायो बस उसका विस्तार । करो अपनी भाषा पर प्यार ।।

भाषा विना व्यर्थ ही जाता ईश्वरीय भी ज्ञान, सब दानों से बहुत बड़ा है ईश्वर का यह दान । असंख्यक हैं इसके उपकार । करो अपनी भाषा पर प्यार ।।

यही पूर्वजों का देती है तुमको ज्ञान-प्रसाद, और तुमहारा भी भविष्य को देगी शुभ संवाद । बनाओ इसे गले का हार । करो अपनी भाषा पर प्यार ।।